हजारीबाग : 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों में पीड़ित सरदार बलवंत सिंह को 40 वर्षों के लंबे संघर्ष के बाद अंततः मुआवजा मिला है। बलवंत सिंह, जो उस समय हजारीबाग के भुरकुंडा में अपनी पत्नी रविंदर कौर और तीन बच्चों के साथ रहते थे, ईंट भट्ठा का व्यापार करते थे और "सिंह बिल्डर" के नाम से प्रसिद्ध थे।
दंगे के दौरान, उपद्रवियों ने बलवंत सिंह के घर को घेर लिया, जिससे उन्हें अपने परिवार के साथ जान बचाने के लिए जंगल में छिपना पड़ा। कुछ दिनों तक जंगल में रहने के बाद, स्थानीय लोगों के सहयोग से वे किसी तरह पंजाब स्थित दंगा पीड़ित कैंप पटियाला पहुंचे। वहां उन्होंने सरकार द्वारा गठित दंगा पीड़ित आयोग में मुआवजे के लिए आवेदन दिया।
सरदार बलवंत सिंह और उनके दामाद अमरदीप सिंह किट्टू ने वर्षों तक मुआवजे के लिए चिट्ठी पत्री और संघर्ष किया। आयोग की अनुशंसा के बाद, उन्हें अंततः न्याय मिला। सेवानिवृत न्यायाधीश धनंजय प्रसाद सिंह की अध्यक्षता में गठित आयोग की अनुशंसा पर बलवंत सिंह को 12 लाख रुपए का मुआवजा आवंटित किया गया।
17 दिसंबर 2024 को हजारीबाग के उपायुक्त नैंसी सहाय के प्रयास से बलवंत सिंह के खाते में 12 लाख रुपए ट्रांसफर कर दिए गए। इस मुआवजे को पाकर बलवंत सिंह, उनके दामाद अमरदीप सिंह, और उनके परिवार के सदस्यों ने सरकार और प्रशासन के प्रति आभार व्यक्त किया।
बलवंत सिंह के लिए यह मुआवजा केवल एक आर्थिक सहायता नहीं है, बल्कि उनके लंबे संघर्ष और धैर्य का प्रतीक भी है। उन्होंने लगभग चार दशकों तक न्याय के लिए लड़ाई लड़ी, जिसमें कई कठिनाइयों का सामना किया।
बलवंत सिंह और उनके परिवार के लिए यह मुआवजा उनके कठिन समय की याद दिलाता है, लेकिन साथ ही यह भी दर्शाता है कि न्याय पाने की लड़ाई में धैर्य और संघर्ष कितना महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने सरकार और प्रशासन की मदद से अपनी लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाया, और उनके इस संघर्ष की कहानी आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।
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