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जमीन पर हो गया अवैध कब्जा? किसका दरवाजा खटखटाएं, क्या कोर्ट करेगा मदद!... जानिए....



HIGHLIGHTS

•आईपीसी की विभिन्न धाराएं आपकी मदद कर सकती हैं.

•पीड़ित व्यक्ति सिविल व आपराधिक दोनों मामले दर्ज कर सकता है.

•सिविल सूट दाखिल करने के लिए 6 महीने का समय मिलता है.

RANCHI . जमीन और घर पर अवैध कब्जा किया जाना कोई नई बात नहीं है. यह कई सालों से चलता आ रहा है. खेतों को कब्जाने के चक्कर में लड़ाई-झगड़े, यहां तक की हत्याएं हुई हैं. हालांकि, प्रॉपर्टी के मामलों में हिंसा का इस्तेमाल करना समझदारी नहीं जान पड़ती है. संविधान में लगभग हर विवाद को सुलझाने के लिए कानून बनाया गया है. इसी तरह प्रॉपर्टी विवाद के मामले में कई कानून हैं जो बगैर हिंसा के आपकी मदद कर सकते हैं.

पीड़ित के पास आपराधिक और सिविल दोनों ही तरह के मुकदमे दर्ज करने का विकल्प होता है. हो सकता है कि कानूनी प्रक्रिया कुछ लंबी हो लेकिन हिंसा से तो देर भली है. आज हम आपको प्रॉपर्टी पर अवैध कब्जे को हटवाने के लिए इस्तेमाल में लाए जाने वाले कुछ कानूनों के बारे में बताएंगे. इसमें शुरुआत की 3 धाराएं आपराधिक कानून हैं जबकि अंतिम धारा सिविल कानून के तहत आती है.

IPC की धारा 420

यह काफी चर्चित धारा है. इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से धोखाधड़ी के अनेक मामलों किया जाता है. अगर किसी व्यक्ति को बल प्रयोग कर उसकी संपत्ति से हटाया गया है तो ये कानून इस्तेमाल में लाया जा सकता है. किसी भी पीड़ित को सबसे पहले इसे इस्तेमाल में लाना चाहिए.

आईपीसी की धारा 406

इस कानून का इस्तेमाल उस वक्त किया जाता है जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति का विश्वास पात्र बनकर उसकी प्रॉपर्टी में सेंध लगाता है. इसे भी संगीन अपराध की श्रेणी में रखा गया है. पीड़ित व्यक्ति इस धारा के तहत अपने नजदीकी पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करा सकता है.

धारा 467

अगर किसी संपत्ति को फर्जी तरीके से तैयार दस्तावेजों के माध्यम से हथियाया जाता है तब यह कानून लागू होता है. इसे कूटरचना कानून के तौर पर भी जाना जाता है. इसमें कूटनीति के तहत फर्जी दस्तावेज बनाकर किसी की संपत्ति हथियाने के मामले का निपटान किया जाता है.

स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट

ये एक सिविल कानून है. इसका इस्तेमाल खास परिस्थिति में होता है. इसमें किसी तरह की धोखाधड़ी नहीं होती, ना ही कोई फर्जी दस्तावेज बनाए जाते हैं. आरोपी व्यक्ति बस मनमर्जी से पीड़ित की संपत्ति पर जबरन कब्जा कर लेता है. इसकी धारा 6 के तहत पीड़ित को जल्दी व आसान न्याय देने का प्रयास होता है. हालांकि, इस कानून में एक पेंच ये है कि कब्जे के 6 महीने के अंदर ही इस कानून के तहत मुकदमा दर्ज हो जाना चाहिए. दूसरा पेंच यह कि इसके तहत सरकार के खिलाफ मुकदमा नहीं कर सकते.

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