राजीव गहलोत
Ranchi: डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्याल द्वारा ऐतिहासिक टुसू महोत्सव कार्यक्रम विधिवत रूप से मनाया गया, कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ तपन कुमार शांडिल्य, विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, शिक्षक, तथा हजारों छात्रों ने भाग लिया, मौके पर विश्विद्यालय में कुंवारी छात्राओं द्वारा टुसू का विधिवत स्थापना कर एवं पूजा अर्चना कर टुसू माता का विसर्जन किया किया गया, तथा मौके पर टुसू गीत गाते हुए विश्विद्यालय के कुलपति , शिक्षकों और छात्रों ने एक साथ ढोल नगाड़ों तथा मांदर के थाप से खूब थिरके।
झारखंड के इतिहास के पन्नों में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय का नाम सदा के लिए दर्ज हो गया जहां भारत के किसी विश्वविद्यालय में पहली बार बृहद रूप से टुसू महोत्सव मनाया गया तथा प्रतिवर्ष मनाने का संकल्प लिया गया। कार्यक्रम का अध्यक्षता कुलपति डॉ तपन कुमार शांडिल्य, स्वागत भाषण खोरठा विभाग अध्यक्ष डॉ विनोद कुमार, धन्यवाद ज्ञापन कुड़मालि भाषा विभाग के अध्यक्ष डॉ परमेश्वरी प्रसाद महतो तथा मंच संचालन रूपेश कुमार और अशोक पुराण ने किया।
मौके पर संबोधित करते हुए कुलपति डॉ तपन कुमार शांडिल्य ने बताया कि झारखंड के प्रमुख पर्व में से एक टुसू पर्व है जो झारखंडी सभ्यता के अनुसार साल का अंतिम पर्व है, एक महीना तक मनाया जाने वाला टुसू पर्व का शुरुआत अघन सक्रांति के दिन कुंवारी कन्या द्वारा टुसू स्थापित कर मकर सक्रांति के दिन विसर्जन किया जाता है, जिसमें टूसुमनी को प्रतिदिन शाम को एक फूल देकर आराधना के साथ टुसू गीत गाया जाता है, इस पर्व का अंतिम सप्ताह अर्थात पुस माह के अंतिम सप्ताह को आउड़ी, चाउड़ी, बाउड़ी और मकर के नाम से जाना जाता है, मकर के दिन ही इस त्योहार का समापन टुसू का विसर्जन पालकी रूपी चौड़ल के साथ घर से निकाल कर बहते पानी में विदा कर दिया जाता है।
साथ ही कुलपति महोदय ने यह भी बताया कि इसी दिन से सूर्य कर्क रेखा की और लौटते क्रम में मकर रेखा पर होता है, जिसे झारखंडी संस्कृति कृषि नव वर्ष अखाइन जतरा के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन धान बुनकर तथा हल चलाकर सांकेतिक कृषि कार्य का प्रारंभ किया जाता है।
कार्यक्रम के दौरान शिक्षक डॉ एस एस अब्बास, डॉ नमिता सिंह , प्रो रामदास उरांव, डॉ जिंदर सिंह मुंडा, डॉ इन्द्रनाथ साहू, डॉ पंकज कुमार शर्मा, डॉ विनय भरत, क्रांतिकारी छात्र नेता देवेन्द्र नाथ महतो के अलावा अन्य को पारंपरिक वस्त्र देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्य रूप हेमंत अहीर, बबलू महतो, कमलेश, धनेश्वर, लक्ष्मण, रीना कुमारी, ज्योतिष, कैलाश, राज किशोर, अभय, रूपेश, अमृत,करम महतो, अमनजीत के अलावा अन्य ने अहम योगदान दिया।
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