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बदल गई नक्सल गढ़ गड़िया-अमकुदर ईलाके की फिजा, अफीम की जगह सब्जी के फसल दे रहे शांति के संदेश


सूर्यकांत कमल

चतरासफेद जहर यानी की प्रतिबंधित अफीम की खेती को लेकर मिनी अफगानिस्तान के रूप में अपनी पहचान बना चुके चतरा की तस्वीर अब बदलने लगी है। चतरा के ग्रामीण अब नशे की खेती को त्याग कर समृद्ध किसान के रूप में इलाके में अपनी पहचान बनाने में जुटे हैं। जिन इलाकों में कभी अफीम के सफेद फूल सरेराह नजर आते थे, उन इलाकों में अब ड्रैगन व अन्य महंगी सब्जियां लहलहा रही हैं। जिससे न सिर्फ इलाके की तकदीर बदल रही है बल्कि यहां कि फिजाएं भी सुगंधित हो चुकी है।

यह सब कुछ संभव कर पाया है तो सिर्फ और सिर्फ पुलिस के निरंतर जागरूकता अभियान और ग्रामीणों की ओर बढ़ाएं गए दोस्ती के हाथ ने। इसी अभियान का परिणाम है कि चतरा के घोर नक्सल प्रभावित नक्सलियों के गढ़ माने जाने वाले झारखंड-बिहार सीमा पर स्थित राजपुर थाना क्षेत्र के गड़िया-अमकुदर समेत आसपास के अन्य गांवों के मजबूर ग्रामीणों पर नक्सल खौफ कम नजर आने लगा है। जागरूक ग्रामीणों द्वारा अफीम की खेती के जगह सब्जी के फसल का उत्पादन इलाके में शांति का खुला संदेश दे रहा है। नक्सल भय की जंजीरों में अब तक कैद अपना और अपने बच्चों का भविष्य तबाह करने में जुटे ग्रामीणों पर पुलिसिया जागरूकता अभियान भारी पड़ता नजर आ रहा है।


अफीम की खेती कर कानूनी मकड़जाल में फंस न्यायालय का चक्कर लगा कर परेशान रहने वाले भोले-भाले ग्रामीण सब्जी की खेती कर ना सिर्फ समृद्ध किसान बन रहे हैं बल्कि अपना जीवन जीने का तरीका भी विकसित करने में लगे हैं। एसपी राकेश रंजन व सीआरपीएफ 190 बटालियन के कमांडेंट मनोज कुमार के ग्रामीणों से दोस्ताने संबंध ने नक्सलियों के हिंसक प्लान को विध्वंस करना शुरू कर दिया है। जंगलों से घिरी पिछड़े इलाकों में विकास की इबारत की भी बुनियाद रखी जा चुकी है।

ग्रामीणों के इस बदलते सकारात्मक सोंच को पुलिस और प्रशासन का भी भरपूर साथ मिल रहा है। एसपी के आग्रह पर जिला प्रशासन द्वारा इलाके में जटिल पहाड़ों का सीना चीर विकास की बयार बहाई जा रही है। अबतक विकास से महरुम इन गांवों को मूलभूत सुविधाओं से जोड़ा जा रहा है। चकाचक सड़कों के निर्माण के साथ डिजिटल इंडिया कार्यक्रमों से जोड़कर यहां निवास करने वाले ग्रामीणों के सपनों को साकार करने की भी दिशा में पुलिस और प्रशासन ने कार्रवाई शुरू कर दी है। 


गड़िया और अमकुदर जैसे सुदूरवर्ती गांवों में मोबाइल के टावर लगाए गए हैं, बिजली से ये ईलाके रौशन हो चुके हैं। विरानी के चादर ओढ़े इन हवाओं में अब मोबाइल की घंटी के साथ-साथ शाम ढलते ही बिजली के बल्ब अपनी रोशनी से विकास के संदेश देते नजर आ रहे हैं। जिससे यहां के बच्चों और बेटियों के शादी की शहनाई की मनोकारी धुन भी लोगों के कानों में सुनाई देने लगी है।

 उम्र गुजर जाने के बाद भी अपनी शादी का इंतजार कर रहे यहां के बच्चों और बेटियों के रिश्ते न सिर्फ समृद्ध शहरों और इलाकों में जुड़ने लगे हैं बल्कि लोग अपनी बेटी की भी शादी यहां के घरों के बच्चों के साथ कर रहे हैं। नक्सल गढ़ के रूप में बदनाम गांवों में मोबाइल की बजती घंटियों ने विकास में बाधक नक्सलियों की नींद उड़ा रखी है, ग्रामीण डिजिटल भारत से जुड़ अपने सपनों को साकार कर अपडेट नजर आ रहे हैं।

गांव के स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में लटके तालों को तोड़ शिक्षा से महरूम बच्चों को ककहरा और एबीसीडी रटाया जा रहा है। एसपी राकेश रंजन और सीआरपीएफ के कमांडेंट मनोज कुमार, एसडीपीओ अविनाश कुमार व अन्य अधिकारियों के साथ निरंतर इलाके का भ्रमण कर ग्रामीणों को हर संभव सहयोग करने के अपने वादो को साकार करने में जुटे हैं। वे लगातार जंगलों और पहाड़ों से घिरे इन गांवों में जाकर ना सिर्फ ग्रामीणों से मिल रहे हैं बल्कि उनकी समस्याओं को सुन उसका ऑन स्पॉट समाधान करने के साथ-साथ उन्हें जरूरत के सामान भी उपलब्ध करा रहे हैं। ताकि वे नक्सलियों द्वारा सहयोग को ले दिए जा रहे किसी भी लोभ और लालच में पड़ अपनी जिंदगी तबाह करने के साथ-साथ कानून को चुनौती पेश न कर सके। 


विकास से दिया जा रहा नक्सलवाद का जवाब : एसपी

ग्रामीणों का हाल जानने दलबल के साथ गड़िया-अमकुदर पहुंचे पुलिस कप्तान राकेश रंजन ने कहा कि नक्सलवाद को विकास से ही मुंह तोड़ जवाब दिया जा सकता है। जो इलाके विकास से रौशन होंगे उन इलाकों से स्वतः नक्सलियों का सफाया हो जाएगा। 

एसपी ने कहा कि विकास में बाधक बन चुके नक्सली विकास से महरूम इलाके के ग्रामीणों को बहला-फुसलाकर उन्हें अपना हितैषी बताते हैं। इतना ही नहीं उन्हें गैर-कानूनी कार्यो में सम्मिलित होकर व्यवस्था को खुली चुनौती पेश करने को लेकर मजबूर भी कर देते हैं। लेकिन अब नक्सलियों की यह नकारात्मक योजना किसी भी स्तर पर सफल नहीं होने वाली। 

पुलिस प्रशासन के सहयोग से ग्रामीणों के साथ समन्वय स्थापित कर इलाकों को न सिर्फ सुदृढ़ करने में जुटा है बल्कि वहां विकास योजनाओं को भी शत-प्रतिशत धरातल पर उतारा जा रहा है। जिससे इन इलाकों में निरंतर विकास पदाधिकारी भ्रमण कर पुलिस और ग्रामीणों के सहयोग से योजना क्रियान्वित कर सके। एसपी ने कहा है कि ग्रामीणों के सहयोग के लिए चतरा पुलिस पूरी तरह कृत संकल्पित है। 

ग्रामीणों को जिस स्तर पर जैसे सहयोग की आवश्यकता होगी पुलिस करेगी। पुलिस कप्तान ने ग्रामीणों से नक्सलियों व असामाजिक तत्वों के साथ-साथ तस्करों कि हर छोटी बड़ी गतिविधि की त्वरित सूचना पुलिस को देने की अपील की। कहा कि सभी के सहयोग से ही तस्करों और नक्सलियों का सफाया संभव है। 

गड़िया-अमकुदर में चलती थी नक्सलियों की समानांतर सरकार

गौरतलब है कि राजपुर थाना क्षेत्र का अति नक्सल प्रभावित व पिछड़ा इलाका गड़िया-अमकुदर समेत आधा दर्जन गांव बिहार बॉर्डर से सटे हैं। इन इलाकों के भौगोलिक संरचनाएं इस कदर है कि कुछ झारखंड के गांव बिहार सीमा इलाके में है और कुछ बिहार के गांव झारखंड सीमा में।

 जिसका लाभ उठाकर नक्सली और अफीम तस्कर यहां के ग्रामीणों को बहला-फुसलाकर अफीम की खेती समेत अन्य गैरकानूनी कृतियों में संलिप्त होने के लिए मजबूर करते थे। इतना ही नहीं इन इलाकों में नक्सलियों और अफीम तस्करों व माफियाओं का ग्रामीणों पर पकड़ इस कदर मजबूत था कि यहां पुलिस की एक नहीं चलती थी। इन इलाकों के हजारों एकड़ वन भूमि पर तस्करों और नक्सलियों के संरक्षण में धड़ल्ले से अफीम की खेती की जाती थी। 

लेकिन करीब एक वर्ष पूर्व तत्कालीन डीसी व एसपी राकेश रंजन के नेतृत्व में सीआरपीएफ 190 बटालियन के कमांडेंट मनोज कुमार, डीएफओ, एसडीपीओ अविनाश कुमार, सिमरिया एसडीपीओ अशोक प्रियदर्शी व स्वास्थ्य व शिक्षा विभाग के अधिकारियों व जवानों की संयुक्त टीम नक्सल गढ़ में पहुंचती है और कैंप कर न सिर्फ नक्सलियों के विकास विरोधी कृतियों बल्कि तस्करों के विरुद्ध अभियान की बुनियाद रख इलाके में विकास का रोड मैप तैयार करने का संकल्प लेती है। 

इस दौरान करीब 500 एकड़ में लगे अफीम के फसल को अधिकारियों व जवानों द्वारा दर्जनों ट्रेक्टरों व जेसीबी के सहयोग से अभियान चलाकर नष्ट कर दिया जाता है। साथ ही ग्रामीणों को इससे होने वाले नुकसान और विकास कार्यों के क्रियान्वयन में उत्पन्न बाधाओं के प्रति जागरूक करने के अभियान की शुरुआत होती है। अधिकारी ग्रामीणों को अफीम की खेती व नक्सलियों के गतिविधि में सहयोग ना करने का संकल्प दिलाते हैं।

इसके अलावा ग्रामीणों की सुरक्षा को लेकर इलाके में अस्थाई पुलिस कैंप भी स्थापित कर दिया जाता है। जिसका असर चंद महीनों में ही नजर आने लगा और आज इलाके की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल चुकी है। नक्सली इलाका छोड़कर भाग चुके हैं और तस्करों का नामोनिशान मिट चुका है।

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