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मुस्लिमों में बढ़ती साक्षरता दर के साथ घटती प्रजनन दर



बैजू गहलोत 

DAILYKHABAR99 Desk : मुस्लिम समाज भारत का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समाज है व मुस्लिम महिलायें इस समाज में साक्षरता, रोजगार व् स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच के लिहाज से काफी सुधार की गुंजाइश है।भूमंडलीकरण का दौर शुरू होने के बाद से मुस्लिम समाज भी इससे अछूता नहीं रहा है। इसका देश विदेश की अन्य समुदायों के साथ संवाद बढ़ा है जिसके कारण मुस्लिम समाज ने वैश्विक माहौल में अपनी अलग पहचान बनाई है। इसके कारण मुस्लिम समाज भी आर्थिक, सामाजिक व शैक्षिक रूप से मजबूत हुआ है। इन सबके कारण मुस्लिम महिलाओ को भी उच्च शिक्षा व रोजगार के अवसर प्राप्त हुए हैं व अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच भी बढ़ी है। इस खबर का आधार एक ऐसी संस्था है जो कि मुस्लिमों के लिए जागरूकता का काम करती है और उनके सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर ये खबर प्रकाशित की गई है।





इस्लाम में मर्दो और औरतो दोनों को एक सामान अधिकार और कर्तव्य प्रदान किया गया है। खासकर शिक्षा को प्रारम्भ से ही महत्त्व दिया गया है यह इसी बात से जाहिर होता है कि इल्म हासिल करो इसके लिए चाहे सात समंदर पार क्यों न जाना पड़े। शिक्षा चाहे धार्मिक हो या दुनियाबी दोनों के लिए इस्लाम ने मनाही नहीं किया है बल्कि मर्द और औरत दोनों को इल्म हासिल करने हेतु बोला गया है। इंसान जब तक अपने धर्म के ज्ञान को प्राप्त नहीं कर पता तब तक वह अपने धार्मिक उसूलो पर नहीं चल सकता। इस सम्बन्ध में इस्लाम का फरमान है कि हर मुस्लमान मर्द औरत पर इल्म फर्ज है।



इन सब कारणों की वजह से मुस्लिम महिलाओ की प्रजानज दर में भी कमी आयी है। जिसने उसके सशक्तिकरण में अहम् भूमिका निभाई है। राष्ट्रिय परिवार स्वास्थ्य परिक्षण के हाल के नतीजों ने दर्शाया है की मुस्लिम व् हिन्दू समाज की महिलाओ की प्रजनन दर में अंतर कम हुआ है। यह बदलाव मुस्लिम समाज में आधुनिक शिक्षा की ग्राह्ता, धार्मिक शिक्षा के साथ साथ बढ़ने से आया है। इसकी वजह से मुस्लिम पुरुषो व् महिलाओ को बेहतर निर्णय लेने के लिए सशक्त किया है। इन वजहों से मुस्लिम महिलाओ को रोजगार व स्वास्थ्य के बारे में ज्यादा जागरूक किया है।


जैसा कि सफल मुस्लिम महिलाओ में बीबी फातिमा शेख जिन्हे आधुनिक भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक के रूप में जाना पहचाना जाता है, सुरैया तैयब जी जिनके बारे में कहा जाता है की भारतीय तिरंगे की डिजाईन इनके द्वारा ही किया गया है, सईदा खुर्शीद, डॉ सैय्यदा हमीद जो की मौलाना आज़ाद कालेज हैदराबाद की कुलाधिपति और योजना आयोग की सदस्या भी रही हैं। इसी तरह वर्तमान में काफी तादात में मुस्लिम महिलाएं विभिन्न क्षेत्रो में कार्यरत हैं और अपने ज्ञान के दम पर अपना लोहा मनवा रही हैं। चाहे वह मेडिकल क्षेत्र हो या शिक्षा का क्षेत्र हो या अन्य प्रशासनिक क्षेत्र सब जगह मुस्लिम महिलाएं आगे आकर काम को अंजाम दे रहीं हैं।

भारत में भी स्वास्थ्य सुविधाओं में बीते तीन दशक में गुणात्मक परिवर्तन आया है। इनका लाभ सभी वर्गों को नहीं मिला है जिसके अनेक कारण हैं सामाजिक, धार्मिक व आर्थिक। हालांकि शिक्षा की बढ़ती पहुँच के कारण अच्छे महिला स्वास्थ्य की महत्ता को मुस्लिम समाज ने भी पहचाना है।

व मुस्लिम महिलाओ की भागीदारी भी आर्थिक व विकास के लिए इनको काफी आगे तक जाना होगा। इसी प्रकार विश्व के तेजी से बदलते परिदृश्य को देखते हुए मुस्लिम समाज की महिलाओ को भी शिक्षा व आर्थिक आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में बहुत कुछ पाना बाकी है जो सतत प्रयास से ही संभव है।


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