Daily khabar99
Mumbai: कभी आपने सोचा है इस साल एक के बाद एक बॉलीवुड की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी हैं लेकिन उतनी ही फिल्मों के अनाउंसमेंट हर महीने हो रहे हैं और फिल्में भी रिलीज हो रही हैं। लेकिन, मजेदार बात ये है कि फ्लॉप फिल्में भी घाटे में नहीं होतीं। ये कैसे होता है?
आज हम आपको बॉलीवुड के बिजनेस की पूरी स्ट्रेटजी बताएंगे। फिल्म बनने के बाद थिएटर में आने तक कितने लोगों से गुजरती है। कमाई में किसका, कितना हिस्सा होता है।
फिल्म ने कितना कलेक्शन किया है, इसी के आधार पर फिल्म के हिट या फ्लॉप होने का फैसला होता है, पर फ्लॉप फिल्में भी इन्वेस्ट की गई रकम को रिकवर कर लेती हैं। राज बंसल के मुताबिक, फ्लॉप फिल्में प्रीसेल्स के जरिए कमाई करती हैं। दरअसल प्रोड्यूसर रिलीज के पहले फिल्मों के राइट्स बेच देते हैं। फिल्में अपनी कमाई म्यूजिक राइट्स, OTT प्लेटफॉर्म राइट्स, सैटेलाइट राइट्स और डिस्ट्रीब्यूटर्स राइट्स से करती हैं। हाल ही में रिलीज हुई फिल्म शमशेरा बाॅक्स आफिस पर बुरी तरह पिट गई थी, पर रिलीज के पहले ही प्रोडक्शन हाउस ने प्री सेल के जरिए अपना इन्वेस्टमेंट रिकवर कर लिया था।
एक्टर, प्रोड्यूसर से ज्यादा क्या डिस्ट्रीब्यूटर्स को नुकसान होता है?
राज बंसल के मुताबिक, फ्लॉप फिल्मों का नुकसान एक्टर, प्रोड्यूसर को नहीं बल्कि डिस्ट्रीब्यूटर्स को उठाना पड़ता है। जो लोग रिलीज से पहले फिल्मों के तमाम राइट्स खरीद लेते हैं, उनको पिटी हुई फिल्मों का नुकसान झेलना पड़ता है।
- फिल्म 2 तरह से बिकती हैं। पहला होता है एडवांस, दूसरा MG यानी की मिनिमम गारंटी।
- फिल्में कैसे एडवांस में डिस्ट्रीब्यूटर्स को बेची जाती हैं, इसको एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए किसी फिल्म का डिस्ट्रीब्यूटर प्रोड्यूसर को 15 करोड़ रुपए देता है। इसके बाद अगर फिल्म सिर्फ 10 करोड़ रुपए की कमाई कर पाती है, तो प्रोड्यूसर को 5 करोड़ रुपए डिस्ट्रीब्यूटर को वापस करने होंगे।
- अगर फिल्में MG यानी मिनिमम गारंटी पर बिकती हैं तो ही डिस्ट्रीब्यूटर्स को फ्लॉप फिल्मों का नुकसान उठाना पड़ता है। इसका मतलब होता है कि वो रकम जो डिस्ट्रीब्यूटर प्रोड्यूसर को फिल्म रिलीज से पहले ही देता है। इसके बाद फिल्म अगर फ्लॉप होती है तो भी तय की हुई रकम का भुगतान डिस्ट्रीब्यूटर को ही करना पड़ता है।
किस आधार पर डिस्ट्रीब्यूटर फिल्मों को खरीदते हैं?
राज बंसल के मुताबिक, फिल्म रिलीज होने से पहले डिस्ट्रीब्यूटर को दिखाई जाती हैं। फिल्म देखने के बाद ही डिस्ट्रीब्यूटर इसे खरीदने का रेट तय करते हैं। फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर को जितना पसंद आती है, उसी के हिसाब से वो फिल्मों पर करोड़ों रुपए खर्च करते हैं। इसके अलावा डिस्ट्रीब्यूटर्स प्रोडक्शन हाउस, प्रोड्यूसर कौन है, ये सारी चीजें भी देख कर फिल्मों को खरीदता है।
फिल्मों में स्टार कास्ट का क्या रोल होता है?
फिल्म हिट होगी या फ्लॉप, ये सारी चीजें स्टार कास्ट पर डिपेंड करती हैं। बॉलीवुड में आज कल ये ट्रेंड है कि स्टार कास्ट से ज्यादा फिल्म की कहानी पर फोकस किया जा रहा है। हालांकि स्टार कास्ट से फिल्मों को बज मिल जाता है। बड़े स्टार के कारण डिस्ट्रीब्यूटर्स भी खिंचे चले आते हैं।
टिकट से फिल्म की कमाई कैसे होती है?
राज बंसल के मुताबिक, जब फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर को बेच दी जाती है, तो उसके बाद डिस्ट्रीब्यूटर, सब-डिस्ट्रीब्यूटर को फिल्म बेच देते हैं। इसके बाद वो सब-डिस्ट्रीब्यूटर्स अपने इलाके के थिएटर मालिकों को फिल्म के प्रिंट दे देते हैं। जब फिल्म थिएटर में रिलीज होती है तो जो टिकट की बिक्री से कमाई होती है, उसे ही फिल्म का टोटल कलेक्शन कहा जाता है। उसके बाद जो कमाई टिकट से होती है, उसको डिस्ट्रीब्यूटर और थिएटर के मैनेजर पहले हुए एग्रीमेंट के आधार पर आपस में बांट लेते हैं।
रीमेक राइट्स और सिंडिकेशन राइट्स से फिल्मों की कमाई कैसे होती है?
अक्षय राठी के मुताबिक, ओवरसीज कमाई के अलावा फिल्में रीमेक और सिंडिकेशन राइट्स से भी अच्छी कमाई करती हैं। सबसे पहले जान लेते हैं कि सिंडिकेशन राइट्स क्या होता है?
ओटीटी प्लेटफॉर्म जैसे नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम वीडियो के राइट्स को बेचकर जो कमाई होती है, वो सिंडिकेट राइट्स का हिस्सा होती है। इसके अलावा सैटेलाइट राइट्स भी सिंडिकेशन का हिस्सा होती है, जैसे कि स्टार गोल्ड, सेट मैक्स पर फिल्मों को बेचकर कमाई की जाती है। यूट्यूब चैनल भी सिंडिकेशन कमाई का एक बड़ा जरिया है। म्यूजिक राइट्स भी सिंडिकेशन राइट्स का एक बड़ा हिस्सा होती है।
म्यूजिक राइट्स- फिल्मों के म्यूजिक से भी शानदार कमाई की जाती है। बड़े बजट की फिल्मों के लिए अलग-अलग म्यूजिक कंपनियां लाइन में खड़ी रहती हैं। जो कंपनी गानों के लिए प्रोड्यूसर को ज्यादा पैसा ऑफर करती है, उसे ही फिल्म के सॉन्ग्स और कंपोजिशन राइट्स दिए जाते हैं। गानों के जितने ज्यादा Views आते हैं, म्यूजिक कंपनी को उतना ही फायदा होता है।
रीमेक राइट्स- रीमेक राइट्स का मतलब ये होता है कि आमतौर पर जो साउथ इंडस्ट्री की फिल्मों के रीमेक राइट्स हिंदी फिल्मों के निर्माता को बेचे जाते हैं।
स्पॉन्सर के जरिए होती है फिल्मों की कमाई
स्पॉन्सर वो लोग होते हैं, जो फिल्म में अपना प्रमोशन करने के लिए पैसा लगाते हैं। प्रोड्यूसर और स्पॉन्सर के बीच एक डील होती है कि फिल्म में कहां और कब कंपनी का नाम दिखाया जाएगा। कई बार आप देखते होंगे कि फिल्म के बीच में एडवर्टाइजमेंट दिखाई देता है, वह स्पॉन्सर के प्रमोशन का पार्ट होता है। इस प्रोसेस से फिल्म को लाखों-करोड़ों का फायदा होता है। थिएटर की फिल्मों में आने वाले एड से जो कमाई होती है, उसका सारा प्रॉफिट थिएटर मालिक को ही जाता है।
क्या थिएटर प्री-बुकिंग से करोड़ों की कमाई करती हैं फिल्में?
अक्षय कुमार स्टारर फिल्म 2.0 ने प्री बुकिंग से करोड़ों की कमाई की थी। दरअसल बड़े स्टारकास्ट की फिल्मों के लिए कई दिन पहले से ही थिएटर्स में प्री बुकिंग शुरू हो जाती है। बॉलीवुड में सलमान खान, अक्षय कुमार जैसे स्टार्स की फिल्मों की प्री बुकिंग सबसे ज्यादा होती है। बड़े स्टारकास्ट की फिल्मों को लेकर बज बना रहता है, जिसकी वजह से प्री बुकिंग से फिल्मों को बड़ा फायदा होता है।
अगर फिल्में प्रोड्यूसर और डिस्ट्रीब्यूटर के बीच हुए एग्रीमेंट से अधिक की कमाई कर लेती हैं, तो उसका कितना लाभ किसको जाता है?
राज बंसल के मुताबिक, जब फिल्में एग्रीमेंट में तय कीमत से ज्यादा की कमाई कर लेती हैं, तो उस कमाई को ओवर फ्लो कहते हैं। जैसे कि फिल्म RRR ने रिलीज के पहले ही करीब 500 करोड़ की कमाई की थी और फिल्म का कुल कलेक्शन करीब 1100 करोड़ का था। इस ओवर फ्लो की कमाई का कुछ हिस्सा डिस्ट्रीब्यूटर के अलावा फिल्म प्रोड्यूसर को भी जाता है। कितने प्रतिशत की हिस्सेदारी प्रोड्यूसर की होगी, ये एग्रीमेंट में पहले से ही लिखा होता है।
बाॅक्स ऑफिस कलेक्शन की कमाई की गणना कैसे होती है?
इंडिया में 2 तरह के थिएटर हैं-
- सिंगल स्क्रीन
- मल्टीप्लेक्स चेन
डिस्ट्रीब्यूटर्स को नुकसान और भरपाई का हिसाब कैसे लगाया जाता है?
डिस्ट्रीब्यूटर का फायदा/नुकसान = फिल्म खरीदने का खर्च- डिस्ट्रीब्यूटर का खर्चा
अब चलिए इसको एक उदाहरण से समझते हैं-
मान लीजिए एक मल्टीप्लेक्स में एक टिकट की कीमत 200 रुपए है और पूरे वीक में कुल 100 लोगों ने फिल्म देखी और फिल्म के 100 शो थिएटर में चले हैं।
इस हिसाब से पूरे वीक का कुल कलेक्शन इस प्रकार होगा- 200 x 100 x 100 = 20 लाख
इसके बाद अगर एंटरटेनमेंट टैक्स काट लिया जाए, जो कि 30% के दर से 6 लाख रुपए है, तो थिएटर मालिक के पास बची हुई रकम 14 लाख होगी।
एग्रीमेंट के अनुसार, थिएटर मालिक डिस्ट्रीब्यूटर को 50 फीसदी हिस्सा देगा यानी रु. 7 लाख रुपए। इसका मतलब कि डिस्ट्रीब्यूटर को पहले वीक में 7 लाख रुपए की कमाई हुई।
दूसरे वीक का कुल कलेक्शन= 200 x 80 x 100 = 16 लाख। एंटरटेनमेंट टैक्स की कटौती के बाद थिएटर मालिक के पास कमाई का कुल हिस्सा= 1600000 - 480000 = 11 लाख 20 हजार
दूसरे वीक में डिस्ट्रीब्यूटर का कुल हिस्सा= 11 लाख 20 हजार का 42 % = 4 लाख 70 हजार 400
तीसरे वीक में डिस्ट्रीब्यूटर का कुल हिस्सा= 4 लाख 70 हजार 400 का 30 % होगा।
इसी तरह की वितरण नीति सिंगल स्क्रीन पर भी लागू होती है, पर डिस्ट्रीब्यूटर को कुल कमाई का 70-80 प्रतिशत हिस्सा जाता है।
0 Comments