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2014 के चुनावों में बीजेपी 282 सीटें जीतकर सत्ता में आई थी. तब इसने बीते तीन दशकों में अपने दम पर बहुमत हासिल किया था. 2019 में पार्टी ने 303 सीटें जीतकर अपने विरोधियों को फिर से झटका दिया था. पार्टी को ऐसी सफलता इसलिए मिल पाई क्योंकि 2014 में खोईं 30 फीसदी सीटों को जीतने में उसने कामयाबी हासिल की थी.
2024 के आम चुनाव की तैयारी शुरू करने के साथ ही सत्ताधारी बीजेपी ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को उसी जगह चोट पहुंचाने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है जहां उन्हें सबसे अधिक दर्द होता है.संसदीय चुनावों में जीत की हैट्रिक बनाने के लिए इस भगवा पार्टी ने ऐसी 144 सीटों की पहचान की है, जिन पर वह 2019 के चुनावों में जीत हासिल नहीं कर पाई थी. पार्टी ने इनमें से कम से कम 77 सीटों पर कब्जे का लक्ष्य तय किया है. और इस तरह से वह 2019 की 303 सीटों की टैली को बढ़ाना चाहती है. इन 144 सीटों में प्रमुख विपक्षी दलों के तीन गढ़ शामिल हैं.
बीजेपी का मास्टर प्लान 2024: प्रमुख विपक्षी नेताओं को उनके गढ़ों तक सीमित रखा जाए2024 चुनाव के लिए बीजेपी ने अभी से रणनीति पर काम शुरू कर दिया है.
2024 के आम चुनाव की तैयारी शुरू करने के साथ ही सत्ताधारी बीजेपी ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को उसी जगह चोट पहुंचाने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है जहां उन्हें सबसे अधिक दर्द होता है.संसदीय चुनावों में जीत की हैट्रिक बनाने के लिए इस भगवा पार्टी ने ऐसी 144 सीटों की पहचान की है, जिन पर वह 2019 के चुनावों में जीत हासिल नहीं कर पाई थी. पार्टी ने इनमें से कम से कम 77 सीटों पर कब्जे का लक्ष्य तय किया है. और इस तरह से वह 2019 की 303 सीटों की टैली को बढ़ाना चाहती है. इन 144 सीटों में प्रमुख विपक्षी दलों के तीन गढ़ शामिल हैं.
2019 में बीजेपी ने दिया था झटका
2014 के चुनावों में बीजेपी 282 सीटें जीतकर सत्ता में आई थी. तब इसने बीते तीन दशकों में अपने दम पर बहुमत हासिल किया था. 2019 में पार्टी ने 303 सीटें जीतकर अपने विरोधियों को फिर से झटका दिया था. पार्टी को ऐसी सफलता इसलिए मिल पाई क्योंकि 2014 में खोईं 30 फीसदी सीटों को जीतने में उसने कामयाबी हासिल की थी.यह फिर से उसी फॉर्मूले पर काम कर रही है और पार्टी ने इस बार लक्ष्य को 30 फीसदी से बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया है. बीजेपी को लगता है कि इस रणनीति से वह संभावित हार वाली सीटों की भरपाई कर पाएगी और अपने ओवरऑल सीटों की संख्या को बढ़ा पाएगी.
इन 144 सीटों में उत्तरप्रदेश की रायबरेली व मैनपुरी और महाराष्ट्र की बारामती सीटें शामिल हैं. ये तीन सीटें शीर्ष विपक्षी नेताओं से जुड़ी हैं या इन पर उनके परिवार के सदस्यों का प्रतिनिधित्व है.
राय बरेली
कांग्रेस पार्टी की मुखिया सोनिया गांधी 2004 से लोकसभा में रायबरेली सीट का प्रतिनिधित्व कर रही हैं. यह दक्षिण-मध्य उत्तरप्रदेश की सीट है और जब 1947 में आजादी के बाद पहली बार संसदीय चुनाव हुए यानी 1952 से यहां गांधी परिवार का दबदबा रहा है. तब से अब तक रायबरेली ने 20 लोकसभा चुनाव देखे हैं और कांग्रेस पार्टी ने इसे 17 बार जीता है. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी ने 1952 और 1957 में यह सीट जीती थी.
इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद 1967 में इस सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया और 1977 को छोड़कर चार बार जीत हासिल की. 1977 में उन्हें राज नारायण के हाथों हार का सामना करना पड़ा था. 1996 और 1998 में इस सीट पर बीजेपी के अशोक सिंह ने जीत हासिल की थी. गांधी परिवार से संबंधित अरुण नेहरू (1980) और शीला कौल (1984, 1989, 1991) यहां से सांसद रहे. 1999 में राजीव गांधी के करीबी दोस्त कैप्टन सतीश शर्मा ने यह सीट जीती. 2004 से सोनिया ने यह सीट पांच बार जीती है, जिसमें 2006 का उपचुनाव भी शामिल है जब उन्हें लाभ के पद के मामले में इस्तीफे देना पड़ा था.
बीजेपी ने घटाया था जीत का मार्जिन
हालांकि, बीजेपी को इस बात का श्रेय जाता है कि 2014 के सोनिया गांधी के 3.52 लाख वोटों के जीत के मार्जिन को उसने 2019 में 1.69 लाख वोटों तक सीमित कर दिया था. भले ही 2022 के उत्तरप्रदेश चुनावों में बीजेपी, रायबरेली लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली पांच विधानसभा सीटों में से सिर्फ एक पर जीत हासिल कर सकी, लेकिन उसे लगता है कि अगर वह इस सीट विशेष ध्यान देगी और 2024 में यहां एक मजबूत उम्मीदवार खड़ा किया तो वह यह सीट जीत सकती है.हालांकि, उत्तरप्रदेश में कांग्रेस पार्टी का सफाया हो गया है. ऐसी अटकलें भी हैं कि सोनिया अपनी खराब सेहत के कारण 2024 का चुनाव नहीं लड़ पाएंगी.
ऐसे में उनके बेटे राहुल गांधी (जो नेहरू-गांधी परिवार के एक अन्य गढ़ अमेठी से 2019 में चुनाव हार गए थे) सहित उनके परिवार का कोई भी सदस्य यहां से चुनाव लड़ सकता है.अगर राहुल यहां से चुनाव नहीं लड़ते तो उनकी छोटी बहन प्रियंका गांधी या उनके पति रॉबर्ट वाड्रा रायबरेली से मैदान में उतर सकते हैं. बीजेपी अमेठी से अपनी सांसद और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को रायबरेली शिफ्ट कर सकती है.
मैनपुरी
इसी तरह मैनपुरी सीट समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का गढ़ रही है. उनकी पार्टी ने 1996 से लगातार सात बार यह सीट जीती है. यादव भी खराब स्वास्थ्य से जूझ रहे हैं और संभव है कि वह 2024 का चुनाव न लड़ें. ऐसे में यादव परिवार के किसी व्यक्ति को प्रत्याशी बनाया जाएगा. 2019 में बीजेपी इस सीट से 94,000 वोटों से हार गई थी.
बारामती
महाराष्ट्र की बारामती सीट को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के सुप्रीमो शरद पवार का पारंपरिक गढ़ माना जाता है. एनसीपी 1989 से इस क्षेत्र में अपराजित रही है, इसने 11 मौकों पर बिना हार के इस सीट पर जीत हासिल की है. 2009 में बेटी सुप्रिया सुले के लिए पवार ने यह सीट खाली की, जिन्होंने लगातार तीन बार यह सीट जीतकर यहां अपने परिवार का दबदबा कायम रखा. 2019 में बीजेपी इस सीट पर दूसरे स्थान पर रही थी, जिसमें सुले ने 1.56 लाख से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल की थी.
बीजेपी की रणनीति: विपक्षी नेताओं को उनके गढ़ों में व्यस्त रखा जाए
एक तरफ विपक्षी पार्टियां जब अपने मतभेदों को दूर कर एकजुट होने का प्रयास कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर बीजेपी की रणनीति यह है कि इन तीन प्रमुख राजनीतिक परिवारों को अपने गढ़ तक ही सीमित कर दिया जाए, ताकि वे दूसरी सीटों पर अपने उम्मीदवारों का प्रचार न कर पाएं. उनकी हार, अमेठी में राहुल गांधी की तरह, उनके अस्तित्व पर एक बड़ा झटका होगी और 2024 व भविष्य में बीजेपी की मदद करेगी.
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