संज्ञान से दर्ज पीआइएल पर सुनवाई करते हुए सरकार को कड़ी फटकार लगायी. कोर्ट ने कहा कि रिम्स की सारी व्यवस्था ध्वस्त हो गयी है. यदि सुधार नहीं हो सकता है, तो राज्य सरकार इसे बंद क्यों नहीं कर देती है.
Jharkhand High Court News: रिम्स में जरूरी मेडिकल सामग्री जैसे दवाएं, सिरिंज, कॉटन, ग्लव्स, एक्स-रे प्लेट आदि उपलब्ध नहीं हैं. प्रबंधन खरीद नहीं रहा है. रिम्स में जांच भी नहीं हो रही है. मरीज के परिजनों को अधिकतर जांच बाहर से करानी पड़ रही है. उन्हें परेशानी उठानी पड़ रही है. इसका असर इलाज पर पड़ता है. बरसात का पानी टपक रहा है. वार्ड में बारिश का पानी घुस जा रहा है. मेडिकल उपकरण खराब हो रहे हैं. कई जांच बंद हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि रिम्स की सारी व्यवस्था ध्वस्त हो गयी है. रिम्स की व्यवस्था कब सुधरेगी. यदि सुधार नहीं हो सकता है, तो राज्य सरकार इसे बंद क्यों नहीं कर देती है. यह टिप्पणी शुक्रवार को हाइकोर्ट ने मौखिक रूप से की.
पीआइएल की सुनवाई के दौरान की टिप्पणी
झारखंड हाइकोर्ट ने रिम्स में इलाज की दयनीय स्थिति और मेडिकल सामग्री की कमी को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज पीआइएल पर सुनवाई करते हुए सरकार को कड़ी फटकार लगायी. चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने दो घंटे तक सुनवाई की.
बार-बार आदेश के बाद भी नहीं सुधरी स्थिति
नाराज खंडपीठ ने कहा कि बार-बार आदेश के बाद भी अब तक रिम्स की व्यवस्था नहीं बदली है. लगता है कि रिम्स प्रशासन में खुद बदलने की इच्छाशक्ति नहीं रह गयी है. रिम्स में जांच मशीनों के खराब रहने से लोगों को इलाज के लिए अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ रहा है.
रिम्स निदेशक के हाजिर नहीं होने पर जतायी नाराजगी
खंडपीठ ने रिम्स निदेशक के सशरीर हाजिर नहीं रहने पर कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि निदेशक कहां हैं. मौखिक रूप से कहा कि जब निदेशक के खिलाफ अवमानना से संबंधित मामले की सुनवाई हो रही है, तो उन्हें स्वयं उपस्थित रहना चाहिए था. निदेशक के बदले प्रभारी निदेशक को क्यों भेजा गया, जब उन्हें किसी बात की जानकारी नहीं थी. अगली सुनवाई के लिए दो सितंबर की तिथि निर्धारित की. रिम्स की ओर से अधिवक्ता डॉ अशोक कुमार सिंह ने पैरवी की, जबकि सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता सचिन कुमार ने पक्ष रखा.
निजी प्रैक्टिस क्यों करते हैं रिम्स के चिकित्सक
खंडपीठ ने कहा कि रिम्स की अव्यवस्था पर वह अपनी आंखें बंद नही रख सकता है. रिम्स के चिकित्सक प्राइवेट प्रैक्टिस भी करते हैं तथा नन प्रैक्टिस अलाउंस भी लेते हैं. खंडपीठ ने रिम्स के अधिवक्ता से जानना चाहा कि किन कारणों से रिम्स के चिकित्सकों को प्राइवेट प्रैक्टिस करने की इजाजत दी गयी है. खंडपीठ ने यह भी कहा कि रिम्स स्वतंत्र संस्था है. जब जीबी में निर्णय होता है, तो उसे सरकार के पास अनुमोदन या स्वीकृति के लिए क्यों भेजा जाता है, जबकि अध्यक्षता मंत्री करते हैं.
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