Bihar: नीतीश कुमार के NDA से अलग हो जाने के बाद बिहार में BJP अकेली पड़ गई है, जबकि दूसरी ओर सात दलों का गठबंधन है। सत्ता की हनक है और वोट बैंक भी। अगर इस गठबंधन में कोई दरार नहीं आई और सहज तरीके से दोस्ती चलती रही तो भाजपा के लिए आगे का रास्ता आसान नहीं होगा। पिछले तीन दशकों से बिहार में भाजपा नीतीश कुमार के कंधे की सवारी करती आ रही थी। इस प्रयास में उसका अपना प्रताप कभी बुलंद नहीं हो पाया.
हालांकि, राजनीति का गणित सहज नहीं होता। फिर भी अगर 2020 के विधानसभा चुनाव को मानक मान लिया जाए तो राजद, जदयू और कांग्रेस के वोट प्रतिशत के आगे भाजपा और लोजपा का टिक पाना मुश्किल है। तीनों दलों के वोट बैंक अगर दूसरे के साथ आसानी चले से गए तो भाजपा के हश्र की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है.
अतीत साक्षी है। लोकसभा चुनाव परिणाम को यदि अपवाद मान लिया जाए तो भाजपा अपने दम पर विधानसभा का कोई चुनाव नहीं जीत सकी है। यहां तक कि 2015 में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की जोड़ी के आगे भाजपा पूरी तरह पस्त नजर आई थी, जबकि उस वक्त तीन क्षेत्रीय दलों से भाजपा का भी गठबंधन था, लेकिन प्रचंड प्रचार अभियान के बावजूद विधानसभा की कुल 243 सीटों में से मात्र 58 पर ही सफलता मिल सकी थी। 2017 में गठबंधन बदल कर फिर से भाजपा के साथ नीतीश कुमार के आ जाने से तस्वीर पलट गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को बिहार की कुल 40 सीटों में 39 पर जीत मिल गई। सिर्फ एक सीट कांग्रेस के खाते में गई। राजद का सुपड़ा साफ हो गया। अगले ही वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा-जदयू ने प्रदेश में बहुमत के साथ सरकार बनाई.
बिहार में कांग्रेस के हाशिये पर जाने के बाद पिछले करीब ढाई दशक से गठबंधन की राजनीति हावी है। तीन प्रमुख दल हैं- भाजपा, जदयू और राजद। तीनों मजबूत हैं पर अपने आप में संपूर्ण एक भी नहीं। सत्ता के लिए तीनों को किसी दूसरे एक पर निर्भर रहना पड़ता है। कांग्रेस की हैसियत चौथे दल के रूप में है। यह न तो किसी को बनाने की स्थिति में है और न ही बिगाड़ने की स्थिति में। किंतु जब भाजपा और जदयू का गठबंधन रहता है तो राजद को संतुलित करने में मददगार जरूर साबित होती है। एनडीए के लिए लोक जनशक्ति पार्टी की भी ऐसी ही भूमिका है.
2020 का हाल
- दल : वोट प्रतिशत
- राजद : 23.11
- जदयू : 15.42
- कांग्रेस : 9.53
- वामदल : 4.64
- भाजपा : 19,46
- लोजपा : 5.66
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